ध्यान में होने वाले अनुभव

जब साधक आज्ञा चक्र में ध्यान लगाते है तो साधकों को ध्यान के दौरान कई अलग प्रकार के अनुभव होते हैं. अनेक साधकों के ध्यान में होने वाले अनुभव एकत्रित कर यहाँ वर्णन कर रहे हैं ताकि नए साधक अपनी साधना में अपनी साधना में यदि उन अनुभवों को अनुभव करते हों तो वे अपनी साधना की प्रगति, स्थिति व बाधाओं को ठीक प्रकार से जान सकें और स्थिति व परिस्थिति के अनुरूप निर्णय ले सकें.


१. भौहों के बीच आज्ञा चक्र में ध्यान लगने पर पहले काला और फिर नीला रंग दिखाई देता है. फिर पीले रंग की परिधि वाले नीला रंग भरे हुए गोले एक के अन्दर एक विलीन होते हुए दिखाई देते हैं. एक पीली परिधि वाला नीला गोला घूमता हुआ धीरे-धीरे छोटा होता हुआ अदृश्य हो जाता है और उसकी जगह वैसा ही दूसरा बड़ा गोला दिखाई देने लगता है. ऐसी घटनाएं कभी कभी कुछ पल और कभी कभी काफी देर तक होती हैं।और
इस प्रकार यह क्रम बहुत देर तक चलता रहता है. साधक गण यह विचार करने पर मजबुर हो जाते हैं कि यह क्या हो रहा है?, इसका अर्थ क्या है ? ध्यान में दिख रहा, इस प्रकार के आंखो में  दिखने वाला नीला रंग आज्ञा चक्र का एवं जीवात्मा का प्रकाश का रंग है. नीले रंग के रूप में जीवात्मा का प्रकाश ही दिखाई पड़ता है. पीला रंग आत्मा का प्रकाश को दिखाता है जो जीवात्मा के आत्मा के भीतर होने का स्पष्ट संकेत है.

ध्यान करते हुए इस प्रकार के गोले दिखना आज्ञा चक्र के जाग्रत होने का एक प्रारंभिक लक्षण है. इससे धीरे धीरे भूत-भविष्य-वर्तमान तीनों प्रत्यक्ष दिखने लगते है।लेकिन इसमें समय लगता है।और व्यक्ति के अभ्यास पर ही निर्भर करता है। और भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं के पूर्वाभास भी होने लगते हैं. साथ ही हमारे मन में पूर्ण आत्मविश्वास जाग्रत होता है जिससे हम असाधारण कार्य भी शीघ्रता से संपन्न कर लेते हैं.

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